मेरे पिता…

मेरे पिता… गर्मियों की छाँव हो तुमसर्दियों की धूप मेरे,तुम्हीं हो काशी, तुम्हीं हो काबातुम्हीं तो हो बस राम मेरे। सुबह मेरे हर दिवस की भविष्य हो तुम, अतीत मेरे,तुम्हीं हो साँसें, तुम्हीं हो धड़कनख़ुशी भी तुम जब ग़म घनेरे। बलिदानों से तेरे बना ये जीवनआशा हो तुम जब हताशा हो घेरे, प्यार हो तुम, शांति भी तुमशक्ति हो और ग्यान मेरे,आँखों की मेरे दृष्टि भी तुम शब्द भी और गीत मेरे। बलिदानों से तेरे बना ये जीवनगर्व हमको, हम संतान तेरे,मार्गदर्शक हर डगर के मित्र भी तुम पित्र मेरे!!!! दुष्यन्त दुष्यन्त सिंह…