मेरे पिता…

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मेरे पिता…

गर्मियों की छाँव हो तुम
सर्दियों की धूप मेरे,
तुम्हीं हो काशी, तुम्हीं हो काबा
तुम्हीं तो हो बस राम मेरे।

सुबह मेरे हर दिवस की 
भविष्य हो तुम, अतीत मेरे,
तुम्हीं हो साँसें, तुम्हीं हो धड़कन
ख़ुशी भी तुम जब ग़म घनेरे।

बलिदानों से तेरे बना ये जीवन
आशा हो तुम जब हताशा हो घेरे,

प्यार हो तुम, शांति भी तुम
शक्ति हो और ग्यान मेरे,
आँखों की मेरे दृष्टि भी तुम 
शब्द भी और गीत मेरे।

बलिदानों से तेरे बना ये जीवन
गर्व हमको, हम संतान तेरे,
मार्गदर्शक हर डगर के 
मित्र भी तुम पित्र मेरे!!!!

दुष्यन्त

दुष्यन्त सिंह चौहान
चित्रकार, कवि, फोटोग्राफ़र और बाईकर..देश प्रेम को दिल में लिए एक सिपाही।सब कुछ देखा, सब में डूँढा.. तेरा जैसा कोई नहीं माँ.. 
मैं हूँ पथिक, मार्ग की बाधा कंकड़ काँटों से परिचित हूँ,
मंज़िल दूर बहुत है लेकिन मैं गतिशील और अविजित हूँ ..

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