जाओ संदेश समीर सहारे.... निर्जन हो, वीराना या इठलाती दरिया के किनारे, बाट जोहता मैं असहाय इस उपवन से उस चौबारे, व्यथा, कथा, प्रतीक्षा, तनहाई और संताप हमारे, कह देना उनको तुम जाओ, संदेश समीर सहारे। गाँवों गली उन्हें खोजना कहीं मिलेगा वो निर्मोही, रोना और सिसकना, बस मेरा था साथी वो ही, पवन झकोरों पर चढ़कर समझाना उनको शाम सबेरे, पुनर्मिलन की आशा में साँसें चलती धड़कन भी पुकारे, अब तो जाओ संदेश, समीर सहारे....
दुष्यन्त
दुष्यन्त सिंह चौहान
चित्रकार, कवि, फोटोग्राफ़र और बाईकर..देश प्रेम को दिल में लिए एक सिपाही।सब कुछ देखा, सब में डूँढा.. तेरा जैसा कोई नहीं माँ..
मैं हूँ पथिक, मार्ग की बाधा कंकड़ काँटों से परिचित हूँ,
मंज़िल दूर बहुत है लेकिन मैं गतिशील और अविजित हूँ ..