Spread the messageआज की शाम… बज रही वीणा पवन की, चिर गयी बदली गगन की, झाँकती रानी किरन की, चूमते मधुकर लुभाने, हो ना जाये कली धुमैली, भोर की अब कौन जाने । साँझ बेला कब रुकेगी, वात साँसों में थकेगी, नीलिमा तम में छुपेगी, शीत की ठिठुरन सी बन कर, कौन तन मन में समाने, भोर की अब कौन जाने। दुष्यन्त दुष्यन्त सिंह चौहानचित्रकार, कवि, फोटोग्राफ़र और बाईकर..देश प्रेम को दिल में लिए एक सिपाही।सब कुछ देखा, सब में डूँढा.. तेरा जैसा कोई नहीं माँ.. मैं हूँ पथिक, मार्ग की … Continue reading आज की शाम…
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