आज की शाम…

आज की शाम… बज रही वीणा पवन की, चिर गयी बदली गगन की, झाँकती रानी किरन की, चूमते मधुकर लुभाने, हो ना जाये कली धुमैली, भोर की अब कौन जाने । साँझ बेला कब रुकेगी, वात साँसों में थकेगी,  नीलिमा तम में छुपेगी, शीत की ठिठुरन सी बन कर, कौन तन मन में समाने, भोर की अब कौन जाने। दुष्यन्त दुष्यन्त सिंह चौहानचित्रकार, कवि, फोटोग्राफ़र और बाईकर..देश प्रेम को दिल में लिए एक सिपाही।सब कुछ देखा, सब में डूँढा.. तेरा जैसा कोई नहीं माँ.. मैं हूँ पथिक, मार्ग की बाधा कंकड़…

आज सुबह….

आज सुबह…. पूरब दिश से उगता सूरजमेघ लालिमा देख रहा, जैसे श्याम सज़ीली युवती का अनगढ़ यौवन निखर रहा, मुक्त बहकती युवा बदलियाँ मदमस्त और खोयीं खोयीं, कोयल कूके, पपीहा बोले किरणें सूरज की सोयीं सोयीं..!!! दुष्यंत दुष्यन्त सिंह चौहानचित्रकार, कवि, फोटोग्राफ़र और बाईकर..देश प्रेम को दिल में लिए एक सिपाही।सब कुछ देखा, सब में डूँढा.. तेरा जैसा कोई नहीं माँ.. मैं हूँ पथिक, मार्ग की बाधा कंकड़ काँटों से परिचित हूँ,मंज़िल दूर बहुत है लेकिन मैं गतिशील और अविजित हूँ ..

जाओ संदेश समीर सहारे….

जाओ संदेश समीर सहारे…. निर्जन हो, वीराना या इठलाती दरिया के किनारे, बाट जोहता मैं असहाय इस उपवन से उस चौबारे,  व्यथा, कथा, प्रतीक्षा, तनहाई और संताप हमारे, कह देना उनको तुम जाओ, संदेश समीर सहारे। गाँवों गली उन्हें खोजना कहीं मिलेगा वो निर्मोही, रोना और सिसकना, बस मेरा था साथी वो ही, पवन झकोरों पर चढ़कर समझाना उनको शाम सबेरे, पुनर्मिलन की आशा में साँसें चलती धड़कन  भी पुकारे, अब तो जाओ संदेश, समीर सहारे…. दुष्यन्त दुष्यन्त सिंह चौहानचित्रकार, कवि, फोटोग्राफ़र और बाईकर..देश प्रेम को दिल में लिए एक…